परिचय
भारत विविध धार्मिक परंपराओं और अनूठे पर्वों का देश है। यहां हर त्योहार के पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ और सांस्कृतिक महत्व छिपा होता है। इन्हीं पावन आयोजनों में से एक है — अंबुबाची मेला। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और नारीत्व के सम्मान का भी उत्सव है। अंबुबाची मेला मुख्यतः असम के गुवाहाटी स्थित प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर में आयोजित होता है। इस मेले में माँ कामाख्या की पूजा की जाती है, जिन्हें सृष्टि की अधिष्ठात्री शक्ति और उर्वरता की देवी माना जाता है।

अंबुबाची मेला क्या है?
अंबुबाची मेला एक वार्षिक धार्मिक आयोजन है, जिसे विशेष रूप से माता पृथ्वी के प्राकृतिक चक्र — मासिक धर्म — से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इस दौरान माँ कामाख्या स्वयं रजस्वला होती हैं, इसलिए मंदिर के गर्भगृह के कपाट कुछ दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस अवधि को देवी के शारीरिक विश्राम का समय माना जाता है। मेले के समाप्त होने पर जब मंदिर के द्वार पुनः खुलते हैं, तो श्रद्धालु देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कामाख्या देवी कौन हैं?
अंबुबाची मेले में जिन देवी की पूजा होती है, वे हैं माँ कामाख्या। कामाख्या देवी को शक्ति और सृजन शक्ति का सर्वोच्च रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने अपने प्राण त्यागे थे, तब भगवान शिव ने उनका मृत शरीर लेकर तांडव किया था। ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए। कहा जाता है कि देवी सती का “योनि” (जननांग) गुवाहाटी की नीलांचल पहाड़ियों पर गिरा था, जहाँ आज कामाख्या मंदिर स्थित है। इसी कारण यह स्थान अत्यंत शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
कामाख्या देवी को सृजन, उर्वरता और मातृत्व का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से जीवन में नई ऊर्जा, उर्वरता, प्रेम और शक्ति का संचार होता है।
अंबुबाची मेला: देवी पूजा की विशेषता
अंबुबाची मेले में माँ कामाख्या की पूजा एक विशिष्ट रूप में की जाती है। आमतौर पर मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है; यहाँ देवी का प्रतीक एक प्राकृतिक शिलाखंड (योनि कुंड) है, जो जलधारा से सिक्त रहता है। अंबुबाची के दौरान यह जल और अधिक लालिमा लिए हुए दिखता है, जिसे देवी के रजस्वला होने का प्रतीक माना जाता है।
मेले के समय मंदिर के मुख्य द्वार बंद कर दिए जाते हैं और पूजा विधियों को गुप्त रखा जाता है। भक्तजन मंदिर परिसर के बाहर ही साधना करते हैं। इस दौरान देवी को वस्त्र और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। तीन दिन बाद देवी के ‘स्वस्थ होने’ के प्रतीक स्वरूप मंदिर के द्वार खोले जाते हैं और श्रद्धालुओं को विशेष ‘अंबुबाची प्रसाद’ वितरित किया जाता है, जिसमें लाल कपड़ा, पवित्र धागा और कुछ मिट्टी शामिल होती है।

अंबुबाची मेले का आध्यात्मिक अर्थ
अंबुबाची मेला नारी शक्ति, उर्वरता और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि जैसे पृथ्वी अपने अंदर जीवन धारण करती है, वैसे ही नारी भी सृष्टि का आधार है। इस मेले के माध्यम से मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक जैविक चक्र को एक पवित्र और शक्तिशाली प्रक्रिया के रूप में सम्मानित किया जाता है, जो आमतौर पर सामाजिक वर्जनाओं के घेरे में रहता है।
साधुओं और तांत्रिकों का जमावड़ा
अंबुबाची मेला तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। इस अवसर पर देशभर से तांत्रिक, साधु-संत और साधक गुवाहाटी पहुंचते हैं। कई साधक अंबुबाची मेले को सिद्धि प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ अवसर मानते हैं। यहाँ विभिन्न साधनाओं, तपस्याओं और अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जो आमतौर पर आम जनता की पहुँच से दूर होते हैं।


सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
अंबुबाची मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि एक विशाल सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दौरान गुवाहाटी शहर में भव्य मेले लगते हैं, पारंपरिक हस्तशिल्प, असमिया व्यंजन, लोक संगीत और नृत्य प्रस्तुतियां होती हैं। स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी इस आयोजन से भारी बल मिलता है, क्योंकि लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहाँ आते हैं, जिससे होटल, परिवहन, दुकानें और छोटे व्यापारियों को लाभ होता है।
आधुनिक बदलाव
समय के साथ अंबुबाची मेले में भी कई आधुनिक सुविधाएँ जुड़ गई हैं। ऑनलाइन दर्शन, विशेष शटल सेवाएं, मोबाइल मेडिकल कैंप, सुरक्षा प्रबंध और डिजिटल सूचना केंद्र जैसी व्यवस्थाएँ की जाती हैं। हालाँकि परंपरा और आस्था की मूल भावना आज भी जस की तस बनी हुई है।
निष्कर्ष
अंबुबाची मेला नारीत्व, सृजन और शक्ति का महापर्व है, जिसमें माँ कामाख्या देवी की पूजा होती है। यह मेला हमें प्रकृति और जीवन के रहस्यों का सम्मान करना सिखाता है। माँ कामाख्या के आशीर्वाद से श्रद्धालु नई ऊर्जा, समृद्धि और आत्मिक शांति की प्राप्ति करते हैं। अंबुबाची मेला न केवल असम की, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक विरासत का गौरवपूर्ण प्रतीक है। आइए, हम भी माँ कामाख्या के चरणों में श्रद्धा अर्पित करें और इस पर्व के माध्यम से शक्ति और करुणा का आशीर्वाद प्राप्त करें।